गुरुवार, 21 मई 2015

कितने अरूणा शानबाग....और कब तक?

 अरूणा शानबाग नहीं रहीं। 1 जून को उनका जन्मदिन है किन्तु जन्मदिन से पहले हीं उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। 42 वर्ष तक दोजख (नरक) को झेलने के बाद आखिरकार उन्हें जिल्ल्त भरी जिंदगी से निजात मिल ही गई। जाते-जाते अरूणा  पितृसत्ता का ढोल-नगाड़ा पीटने वाले तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले आदिम मनु के वंशजों के लिए एक प्रश्न छोड़कर गयी हैं कि-"क्या एक हँसता-खेलता खुशहाल जिंदगी को नेस्तनाबूद कर देने वाला दरिंदा सिर्फ सात साल के सजा का हकदार था? एक जिंदगी की कीमत सिर्फ सात साल कारावास!" देश के कानून व्यवस्था का आलम तो देखिए कि 42 साल से लाइफ सर्पोट सिस्टम के सहारे जिंदा लाश बनी अरूणा शानबाग को सुप्रीम कोर्ट ने मर्सी किलिंग तक की अनुमति नहीं दी। न जाने कितने अरूणा और निर्भया चीख-चीखकर आज भी यह प्रश्न पूछ रही हैं कि आखिर क्यों और कब तक इस देश का कानून व्यवस्था आधी-आबादी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करता रहेगा।
     जैसे ही अरूणा के मौत की खबर आयी समस्त मीडिया परिवार पूरे ताम-झाम के साथ अपना असला-खसला लेकर सक्रिय दिखाई दिया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने तो अतिवादिता की सारी-सीमाओं का अतिक्रमण ही कर दिया। समाचार-संचार के इन पैरोकार से जो कि सनसनीखेज समाचार उगाही करने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार दिखते हैं प्रश्न पूछना लाजिमी है कि इससे पहले इन्हें अरूणा की याद क्यों नहीं आयी? इस मुद्दे पर बहस क्यों नहीं हुआ। आज जितनी तत्परता से टी.आर.पी बटोरने या उगाहने के लिए ये अपनी समाचार दूकान की मंडी खोलकर बैठे है काश कि यह काम ये पहले ही कर लेते तो शायद अरूणा को कुछ और इंसाफ मिल जाता।
   1973 से खामोशी से अपनी लड़ाई लड़नेवाली अरूणा शानबाग ने 66 वर्ष की आयु में KEM हॉस्पिटल के वार्ड नं.4 में जीवन की आखिरी साँस लिया, साथ ही सभ्य सुसंस्कृत कही जाने वाले भारतीय पुरूषसत्तात्मक समाज की सोच एवं व्यवस्था की काली मर्दवादी मानसिकता पर एक तमाचा जड़ते हुए दुनिया को अलविदा कह गई।
   यह गंभीर विमर्श का मुद्‍दा है कि जो राष्ट्र कभी मातृसत्तात्मक हुआ करता था आज उस राष्ट्र एवं समाज में स्त्री को मानवी होने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। वह राष्ट्र एवं समाज उन्नत, खुशहाल और स्वस्थ कैसे हो सकता है जहाँ स्त्री विमर्श एवं सशक्तीकरण के अतिआधुनिक युग में भी स्त्री हाशिए पर पड़ी एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं है। आखिर कितने अरूणा शानबाग और निर्भया ..... कब तक और क्यों????

प्रतिभाशाली स्त्रियाँ

  आसान नहीं होता  प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना , क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी | झुकती नहीं वो कभी , जब तक रिश्तों मे न हो  मजबूर...